न जाने क्यूँ

 कभी लगता था , सब सपने सच होंगे, 

न जाने क्यूँ , हम ही बिखर गए, 


कभी आस थी , मुश्किलें फतह करने की, 

न जाने क्यूँ , वो आस ही चली गयी, 

 

कभी छोटी छोटी बातों से खुशियाँ मिलती थी, 

न जाने क्यूँ , वो बातें ही सिमट गयी, 


कभी हर सफर का किनारा पता होता था, 

न जाने क्यूँ , अब सफर का इरादा भी न रहा! 


                       "विमल पटेल"

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