मंजिल की आस

 वक्त का मरहम , 

जो घाव न भर सका, 

उसे अंजाम की सरहदें

थोड़ा छुपा लेती हैं । 


 सागर का पानी , 

जो प्यास न बुझा सका, 

उस वीरान धरा को, 

बारिश जगा देती है। 


लंबा सा सफर, 

जो आस न जगा सका, 

उस बिछड़ती हिम्मत को,

 मंजिल हँसा देती है। 

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